खबर के लिए कभी पत्रकार उसके पीछे भागता है तो कभी खबरें उनका पीछा करती है. दोनों का संपर्क जरूरी है लेकिन अगर गुफा में बैठ कर खबर बनानी हो तो. बात नहीं, टीवी या टेलिफोन नहीं क्या सिर्फ इंटरनेट के दम पर खबर जम सकती है.
रेडियो पत्रकार बीनू सुबेदी का हर दिन कहते सुनते गुजरता है लेकिन अब तीन दिन उन्हें बिल्कुल खामोश रह कर अपना काम करना है. बीनू समेत पांच पत्रकारों को एक होटल में रखा गया है और वो सोशल मीडिया के जरिए केवल इंटरनेट की मदद से खबरें तैयार करने में जुटे हैं. मीडिया गुफा 2012 नाम के इस इवेंट के लिए मीडिया फाउंडेशन नाम की एक संस्था ने नई तकनीक में दक्ष पत्रकारों को चुना है.
आयोजकों का कहना है कि वह केवल इंटरनेट के जरिये मिली जानकारियों से स्टोरी तैयार करने की संभावनाओं का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं जिससे कि ग्रामीण नेपाल को मीडिया में ज्यादा कवरेज दिलाई जा सके. मीडिया फाउंडेशन के महासचिव धर्म अधिकारी ने कहा, “इस कैंप का मकसद यह पता लगाना है कि नेपाल जैसे विकासशील देश में खबरों तक पहुंचने में इंटरनेट किस हद तक मददगार हो सकता है.”
इन पत्रकारों को सिर्फ इंटरनेट की सहूलियत दी गई है और खबरों के बारे में जानकारी जुटाने के लिए वो उसका हर तरह से इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन उन्हें अपना मुंह बंद रखना होगा. इन लोगों को लैपटॉप कंप्युटर जैसे उपकरण तो दिए गए हैं लेकिन न तो उन्हें फोन पर किसी से बात करने की इजाजत है न ही आपस में. कैंप में शामिल गुनराज लुइतेल ने बताया, “नेपाली में गुफा का मतलब पहाड़ की कंदरा होता है. हमारे इतिहास में बुद्घिमान लोग अकसर ज्ञान के लिए गुफाओं में जा कर वक्त बिताया करते थे, अब नई मीडिया के बारे में जानकारी जुटाने की हमारी बारी है.”
इन पत्रकारों से उम्मीद लगाई गई है कि ये लोग स्वास्थ्य, शिक्षा, जलवायु में बदलाव, स्त्री पुरुषों और बच्चों से जुड़ी ग्रामीण खबरें तैयार करेंगे. अधिकारी ने बताया, “नेपाल में महज 19 फीसदी लोगों तक ही इंटरनेट पहुंच पाया है और यहां न्यू मीडिया का इस्तेमाल करने वाले लोगों की तादाद 10 लाख से भी कम है, ऐसे में पत्रकारों के लिए यह एक बड़ी चुनौती है.” उन्होंने बताया कि इसका विचार उन्हें फ्रांस में इसी तरह के एक आयोजन से मिला जिसके बारे में उन्होंने इंटरनेट पर पढ़ा था.
टीवी न्यूज रिपोर्टर रजनीश भंडारी के लिए यह कैंप एक मौका है यह जानने का कि वो लोगों तक खबर पहुंचाने में सोशल मीडिया का कितना इस्तेमाल कर सकते हैं. रजनीश ने कहा, “मुझे लगता है कि इससे मुझे यह सीखने को मिलेगा कि सोशल मीडिया को एक उपकरण की तरह कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है. केवल इंटरनेट के जरिये खबर ढूंढना और सारे इंटरव्यू इंटरनेट के जरिए करना एक कठिन काम है क्योंकि हमारे देश में इंटरनेट का इस्तेमाल उतना नहीं होता, लेकिन एक पत्रकार के रूप में मेरे लिए यह एक शानदार अनुभव होगा.”
पत्रकारों के साथ तीन रिसर्चरों की एक टीम भी है जो उनके कामकाज और व्यवहार पर नजर रखेगी और उन्हें दर्ज करेगी. रिसर्चर हेम राज काफले ने कहा, “हम उन पर बिग ब्रदर शो की तरह निगाह रखने के लिए नहीं हैं लेकिन हम उनके मानसिक तनाव पर नजर रखेंगे और साथ ही उनकी आदतों में होने वाले बदलाव पर भी. इन जानकारियों का बाद में इस्तेमाल होगा.”
बीनू सुबेदी भी इस कैंप को लेकर बेहद उत्साहित हैं, हालांकि कुछ डर भी है, “मैं रेडियो के लिए काम करती हूं इसलिए तीन दिन तक नहीं बोलना एक मुश्किल काम हो सकता है. लेकिन यह ध्यान की तरह हो सकता है जिस दौरान हम कुछ सीख रहे हों.”
एनआर/एमजी (डीपीए)
Deutsche Welle Hindi, 9 September 2012
रेडियो पत्रकार बीनू सुबेदी का हर दिन कहते सुनते गुजरता है लेकिन अब तीन दिन उन्हें बिल्कुल खामोश रह कर अपना काम करना है. बीनू समेत पांच पत्रकारों को एक होटल में रखा गया है और वो सोशल मीडिया के जरिए केवल इंटरनेट की मदद से खबरें तैयार करने में जुटे हैं. मीडिया गुफा 2012 नाम के इस इवेंट के लिए मीडिया फाउंडेशन नाम की एक संस्था ने नई तकनीक में दक्ष पत्रकारों को चुना है.
आयोजकों का कहना है कि वह केवल इंटरनेट के जरिये मिली जानकारियों से स्टोरी तैयार करने की संभावनाओं का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं जिससे कि ग्रामीण नेपाल को मीडिया में ज्यादा कवरेज दिलाई जा सके. मीडिया फाउंडेशन के महासचिव धर्म अधिकारी ने कहा, “इस कैंप का मकसद यह पता लगाना है कि नेपाल जैसे विकासशील देश में खबरों तक पहुंचने में इंटरनेट किस हद तक मददगार हो सकता है.”
इन पत्रकारों को सिर्फ इंटरनेट की सहूलियत दी गई है और खबरों के बारे में जानकारी जुटाने के लिए वो उसका हर तरह से इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन उन्हें अपना मुंह बंद रखना होगा. इन लोगों को लैपटॉप कंप्युटर जैसे उपकरण तो दिए गए हैं लेकिन न तो उन्हें फोन पर किसी से बात करने की इजाजत है न ही आपस में. कैंप में शामिल गुनराज लुइतेल ने बताया, “नेपाली में गुफा का मतलब पहाड़ की कंदरा होता है. हमारे इतिहास में बुद्घिमान लोग अकसर ज्ञान के लिए गुफाओं में जा कर वक्त बिताया करते थे, अब नई मीडिया के बारे में जानकारी जुटाने की हमारी बारी है.”
इन पत्रकारों से उम्मीद लगाई गई है कि ये लोग स्वास्थ्य, शिक्षा, जलवायु में बदलाव, स्त्री पुरुषों और बच्चों से जुड़ी ग्रामीण खबरें तैयार करेंगे. अधिकारी ने बताया, “नेपाल में महज 19 फीसदी लोगों तक ही इंटरनेट पहुंच पाया है और यहां न्यू मीडिया का इस्तेमाल करने वाले लोगों की तादाद 10 लाख से भी कम है, ऐसे में पत्रकारों के लिए यह एक बड़ी चुनौती है.” उन्होंने बताया कि इसका विचार उन्हें फ्रांस में इसी तरह के एक आयोजन से मिला जिसके बारे में उन्होंने इंटरनेट पर पढ़ा था.
टीवी न्यूज रिपोर्टर रजनीश भंडारी के लिए यह कैंप एक मौका है यह जानने का कि वो लोगों तक खबर पहुंचाने में सोशल मीडिया का कितना इस्तेमाल कर सकते हैं. रजनीश ने कहा, “मुझे लगता है कि इससे मुझे यह सीखने को मिलेगा कि सोशल मीडिया को एक उपकरण की तरह कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है. केवल इंटरनेट के जरिये खबर ढूंढना और सारे इंटरव्यू इंटरनेट के जरिए करना एक कठिन काम है क्योंकि हमारे देश में इंटरनेट का इस्तेमाल उतना नहीं होता, लेकिन एक पत्रकार के रूप में मेरे लिए यह एक शानदार अनुभव होगा.”
पत्रकारों के साथ तीन रिसर्चरों की एक टीम भी है जो उनके कामकाज और व्यवहार पर नजर रखेगी और उन्हें दर्ज करेगी. रिसर्चर हेम राज काफले ने कहा, “हम उन पर बिग ब्रदर शो की तरह निगाह रखने के लिए नहीं हैं लेकिन हम उनके मानसिक तनाव पर नजर रखेंगे और साथ ही उनकी आदतों में होने वाले बदलाव पर भी. इन जानकारियों का बाद में इस्तेमाल होगा.”
बीनू सुबेदी भी इस कैंप को लेकर बेहद उत्साहित हैं, हालांकि कुछ डर भी है, “मैं रेडियो के लिए काम करती हूं इसलिए तीन दिन तक नहीं बोलना एक मुश्किल काम हो सकता है. लेकिन यह ध्यान की तरह हो सकता है जिस दौरान हम कुछ सीख रहे हों.”
एनआर/एमजी (डीपीए)
Deutsche Welle Hindi, 9 September 2012